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यदि साथ दो कन्हैया एहसान हो तुम्हारा / रंजना वर्मा
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यदि साथ दो कन्हैया एहसान हो तुम्हारा
बस आस ले यही तो तुमको सदा पुकारा
न कहीं है कोई अपना मुश्किल बड़ी घड़ी है
पतवार भी है छोटी और दूर है किनारा
जिस डाल पर है बैठा उसको ही काटता है
मिलती न मंजिलें हैं न कहीं कोई सहारा
दुनियाँ अजीब है यह बस स्वार्थ की पुजारिन
अपने सिवा किसी को इस ने नहीं निहारा
हमको नहीं सुहाते बंधन ये ज़िन्दगी के
घनश्याम मुक्तिदाता बहुतों को तुमने तारा