भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यमुना के किनारे जरा वंशी तो बजाओ / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
यमुना के किनारे जरा वंशी तो बजाओ।
घनश्याम वही तान हमें फिर से सुनाओ।।
आओ कि तुम्हें टेर रही मात तुम्हारी
नवनीत चुरा आज जरा लाड़ लड़ाओ।।
ग्वाले हैं तुम्हें ढूंढ़ रहे कुंज विपिन में
गउएँ भटक गई हैं तुम्ही ढूँढ़ के लाओ।।
हैं नंद खड़े द्वार रहे देखते रस्ता
आ श्याम कन्हैया न उन्हें और सताओ।।
है बाँस की वो वेणु तुम्हें प्राण से प्यारी
हो राधिका के श्याम तो फिर लौट के आओ।।
हो श्वांस समाये तो रहो मीत हृदय के
धड़कन न बनो जान मगर साथ निभाओ।।
चौखट पे तुम्हारी हैं पड़े भक्त तुम्हारे
कुछ आज सुनो बोल मधुर अपने सुनाओ।।
गहरा है बड़ा विश्व महासिंधु अनोखा
नैया हैं भंवर बीच फँसी पार लगाओ।।