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यलगार लिखो / विजय कुमार विद्रोही

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देखो अपने शीतरक्त से उपजी शीतलता देखो |
देखो हाथ पसारे अपना भारत कर मलता देखो |
देखो यहाँ दलों का दलदल राजनीति ले डूबा है |
देखो लोकतंत्र बेबस है ,जन जन बचपन टूटा है |

मिले हज़ारों रावण लेकिन राम नहीं दिख पाया है |
उसी धरा पर फिर से दिखता काला काला साया है |
मंचों पर जिनको बाँच बाँच कर भिक्षापात्र भरे तूने |
माँ सरस्वती के वरदहस्त से यश धन प्राप्त करे तूने |

उस सैनिक का लहू बहे उसको स्वाति का नीर समझ |
वीरों का सम्मान करे तब ही तू ख़ुद को वीर समझ |
रोता काजल,शुष्क नयन , मुर्दा सी ज़िंदा नार लिखो |
प्रेम प्रीत के साथ साथ यलगार लिखो यलगार लिखो |