बहन, तुम देखती हो कितने सारे भिखारी
और अभागे, और कितने सारे भलेमानस चीथड़े बीनने वाले
सिर्फ़ हम दो हैं : मुट्ठी बांधे भिखारी
और गूंगे अभागे
बहन, अपना हाथ मुझे पकड़ाओ, यहाँ इतनी कारें
और इतने सारे बड़े लोग चलते हैं कि हमें होशियार रहना होगा
अगर मैंने तुम्हें छोड़ दिया तो अंधे गलियारे तुम्हें ले जायेंगे
बहन, देखो, हम दो हैं : एक पिता के सपने
और दो माँओं की तकलीफ़ें हम में चीख़ती हैं
दो सुन्दर आलिंगनों की निशानियों की तरह, देखो,
हम बचे हैं, दो महान स्वप्न-स्मृतियाँ, और हमारे ख्वाब
सुबहों में धीरे-धीरे सरकते हैं, दिन के डंठलों के खेतों पर
हम सपने देखते हैं
और जब घूमने जाते हैं तो एक-दूसरे का हाथ पकड़े रहते हैं।
रचनाकाल : 12 अक्तूबर 1928
अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु खरे