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यहाँ एक नगर था / गोविन्द माथुर
Kavita Kosh से
यहाँ एक नगर था
कुछ आदमी रहा करते थे
कुछ औरते शर्माया करती थीं
कुछ बच्चे खिलखिलाया करते थे
इधर इस मोड़ पर एक चौक था
घरों के बाहर चबूतरे थें
जहाँ घन्टों बैठक जमा करती थी
ताश और चौसर चला करती थी
एक पेड़ था जिसकी छाँव में
धूप ख़ुद सुस्ताया करती थी
दीवारों पर चित्र हुआ करते थे
हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की
एक ख़ामोश गीत सुनाई पड़ता था
जिसे ख़ामोशी ख़ुद गुनगुनाया करती थी
उधर उस मोड़ पर एक हाट था
ये पूरा का पूरा नगर कैसे बाज़ार हो गया
ये इतने दुकानदार किस देश-विदेश से आए हैं
यहाँ एक नगर था
उस नगर का क्या हुआ