भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यहाँ मुक्ति की प्रबल चाह / प्रभाकर माचवे

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यहाँ मुक्ति की प्रबल चाह है उसी एक दुर्दान्त शक्ति की-
हमें न कोई पनाह अथवा शरण चाहिए, अन्ध-भक्ति की !
यहाँ सरल अन्तर दो परस्परातुर, और चाहिए भी क्या ?
हमें न किंचिन्मात्र ज़रूरत किसी तर्क की, किसी युक्ति की !