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यहाँ संवेदना का अर्थ अभिनय है / सरोज परमार

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साहब मर गए हैं
साहब मर गए हैं
अब...
बुक्का फाड़कर रोना पड़ेगा
बीची छाती पीटेगी
बच्चे माथा फोड़ कर चीखेंगे
मजबूरी है.
जो जितना रोएगा उतना पाएगा
यहाँ संवेदना का अर्थ अभिनय है.
बीची दिन भर बावर्ची है
रात नन्हों के आया
बच्चे बड़े हुए उतरन पहनते
जूठन उनका नसीब
मैं रात को चौकीदार
दिन को हरकारा बना रहा
रोना आज मजबूरी है
अन्दर-ही अन्दर दहल रहा हूँ
बीवी-बच्चों के संग सहम रहा हूँ
कारख़ाने पर कौन काबिज़ होगा?
खेतों पर अख़्तियार किसका?
सेहन बँटेगा ,छत बँटेगी
मेरी कोठरी किसके हिस्से पड़ेगी?
क्या छत ,जूठन, उतरन से भी जाऊँगा?
चालीस -साल तो इस घर में
झोंक दिए पोतड़े धोते-भागते
हगने-मूतने ले लेकर सेहराबन्दियाँ देखी हैं
साहबी बच्चों की.
अब जनाब कहाँ जाऊँगा?
कौन जानता है इस घर में
मैं और मेरी बीवी बाँट दिए जाएँ
मुन्नी को आया बना कर
लक्सर भेज दिया जाए.
मुन्ने को दिल्ली
और...
हिवड़ा चीर कर चीख़ निकल जाती है.
बेबसी पिघल कर बह जाती है
मुझे देख दुहत्थड़ मार बीवी रोती है
माथा फोड़ कर बच्चे.