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यहाँ सूरज हँसेंगे आसुंओं को कौन देखेगा / बशीर बद्र

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यहाँ सूरज हँसेंगे आँसुओं को कौन देखेगा
चमकती धूप होगी जुगनुओं को कौन देखेगा

फलों की बागवानी में तो बारिश की दुआ होगी
गुज़रते ख़ूबसूरत बादलों को कौन देखेगा

अगर हम साहिलों पे डोर काँटे ले के बैठेंगे
तो मौजों में चमकती तितलियों को कौन देखेगा

है सर्दी वाक़ई लेकिन घने कोहरे के बादल में
पहाड़ों से उतरती इन बसों को कौन देखेगा

बहुत अच्छा सा कोई सूट पहनो इस ग़रीबी में
उजालों में छिपी इन बदलियों को कौन देखेगा

अभी अपने इशारे पर हमें चलना नहीं आया
सड़क की लाल-पीली बत्तियों को कौन देखेगा