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यहाँ हारे थके को कोई अपने पर नहीं देता / लव कुमार 'प्रणय'

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यहाँ हारे थके को कोई' अपने पर नहीं देता
तुम्हारा प्यार भी गम की दवा आकर नहीं देता

बड़ा वह दोस्त बनता है सदा अपना समझता है
मगर दुश्मन से' लड़ने को मुझे खंजर नहीं देता

गमों में डूबकर देखो नहीं जीवन सँवरता है
यहाँ ईश्वर भी मानव को सदा अवसर नहीं देता

हमेशा कर्म का ही फल मिला करता यहाँ सबको
भरोसे भाग्य के कोई खुशी लाकर नहीं देता

न सोने से मिले कुछ भी न रोने से मिले कुछ भी
जमाना हार ने वाले को' अपना स्वर नहीं देता

समन्दर तो बहुत खारा लुटाता है मगर मोती
कभी भी दोष वह अपने मुकद्दर पर नहीं देता

यहाँ हँसना नहीं मजबूर के दिल को दुखाकर तुम
'प्रणय' जब पास हैं खुशियाँ उसे क्योंकर नहीं देता