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यहां-वहां-जहां आपने सिक्के उछले हैं / सांवर दइया
Kavita Kosh से
यहां-वहां-जहां आपने सिक्के उछले हैं।
देखिए, आगे बढ़ हमने ही सभाले हैं।
साधु की हो या कसाई की, अपना क्या,
हम तो सिर्फ पोस्टर चिपकाने वाले हैं।
नतीज़े की परवाह किये बिना, आगे बढ़-
कोई छेड़े, हम तो बहस बढ़ाने वाले हैं।
अपना विश्वास रहा सदा जिस्म ढकने में,
फिक्र किसे, चोले सफेद है या काले हैं।
जान चुके, देखिए उनको न छोड़ेगे अब,
जिनके कारण हाथों से दूर निवाले हैं।