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यहां सरेआम उनकी इनायत अब भी है / सांवर दइया
Kavita Kosh से
यहां सरेआम उनकी इनायत अब भी है।
पर दिलों में ठनी हुई अदावत अब भी है!
अमल हो रहा है आवास योजनाओं पर,
धरती आंगन और आकाश छत अब भी है!
वे कहते- झूठ बोलो तो ख़िताब दिला दें,
पर क्या करें, सच कहने की आदत अब भी है!
घोषणाएं तो हो चुकीं कर्फ्यू अठने की,
क़दम-क़दम पर मन में दहशत अब भी है!
शराफ़त का तो शिर्फ़ जामा पहना है ऊपर,
सड़ांध देता तालाबे-बहशत अब भी है!