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यही तो एक सवाल है / नाज़िम हिक़मत
Kavita Kosh से
पृथ्वी का सारा धन उनकी प्यास नहीं बुझा पाता है,
उन्हें तो हवस है कि काफ़ी रक़म पैदा करें
तुम दूसरों को मारों और ख़ुद मर जाओ
कि काफ़ी रक़म से तिजोरियाँ उनकी भरें।
बेशक वे खुले तौर से यह नहीं मानते
वे सूखी डालों पर भड़कीली लालटेनें लटकाते
और रास्तों पर चमकीले झूठ दौड़ाते
उनकी दुमों के हर हिस्से में घण्टियाँ या चमाचम लटकन ही नज़र आते।
बाज़ारों के बीच ढोल वे पीटते हैं —
खेमे के भीतर देखो चीते-सा आदमी, जलपरी, बेसिर का आदमी।
खिंचे हुए तार पर लाल जाँघियों में नट खेल दिखलाते हैं
और सबके चेहरों पर पुताई की गहरी तहें जमी हैं।
तुम धोखा खाओगे या नहीं
यही तो एक सवाल है
धोखा खाने से बचे तो जियोगे
और खा गए तो जीना मुहाल है।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : चन्द्रबली सिंह