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यही समय है / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
आओ मिल कर सुर को साधें, सात सुरों का देश
सघन शोर के सर पर गूंजे जीवन का संगीत
इस कोलाहल से तो अब है काल तलक भयभीत
दिशा-दिशा के खुले हुए हैं काले कुन्तल-केश ।
आओ मिल कर सुर को साधंे, सात सुरों का देश
नाच उठे पतझड़ वसन्त-सा, खिले शिशिर के फूल
ग्रीष्म लगे सावन की डोली चन्दन-चन्दन धूल
सिहरे ठूंठ कि पंचम सुर का ऐसा हो उन्मेष ।
आओ मिल कर सुर को साधें, सात सुरों का देश
नदिया नाचे, जंगल नाचे, नाचे पर्वत-पर्वत
गाँव-शहर के दिवस-रात हो धूप-दीप, जल-अक्षत
फूलों की आँखों में आँसू दिखे कहीं न लेश ।
पूजा पर पढ़ता है मारण प्रेत पुरोहित-भेष
आओ मिल कर सुर को साधें, सात सुरों का देश ।