भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यह अनंत आकाश / लावण्या शाह
Kavita Kosh से
यह अनंत आकाश,
दिग्दिगंत तक व्याप्त व्योम
समस्त ब्रह्माण्ड,
कौन सी परिधि ?
कौन से पंख ?
मेरे मन, ह्रदय में
भावों के उद्वेलन,
सुकोमल से डैने,
उड़ूँ उड़ूँ उड़ जाऊँ,
झीने झीने,
नर्म नर्म बादलों के पार ~
सर्र सर्र सरर सर्र फैलाये,
चमकीले मुलायम ये पर ~
आतम - हँस भरेगा उड़ान,
रहेगा दिश में बस प्रकाश !