यह कविता मैं ने उस दिन
वहाँ आपको सुनायी थी
किस दिन, कहाँ,
यह मुझे स्वयं भी याद नहीं।
पर ‘उस दिन वहाँ’,
यह कर कर मैं आपसे नाता जोड़ता हूँ
नाते का विश्वास
और विश्वास का नाता
उसी में फिर सुनाता हूँ
अपने को गलाता हुआ आपकी ओर बह कर।
यह कविता मैं ने उस दिन
वहाँ आपको सुनायी थी
किस दिन, कहाँ,
यह मुझे स्वयं भी याद नहीं।
पर ‘उस दिन वहाँ’,
यह कर कर मैं आपसे नाता जोड़ता हूँ
नाते का विश्वास
और विश्वास का नाता
उसी में फिर सुनाता हूँ
अपने को गलाता हुआ आपकी ओर बह कर।