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यह केवल एक मनोविकार है / अज्ञेय
Kavita Kosh से
यह केवल एक मनोविकार है।
हमारी बुद्धि, हमारी विश्लेषण-शक्ति, जो हमारी सभ्यता और संस्कृति का फल है, एक-दूसरे की त्रुटियों को जान गयी है। मनसा हम विमुख हो गये हैं, और विश्रान्ति से भरे एक क्षीण औत्सुक्य से एक-दूसरे को देख रहे हैं।
किन्तु हमारी बाह्य आत्मा ने, हमारे शरीर ने अभी तक वह संगीत नहीं भुलाया। हमारे तन अब भी इसी उन्मत्त वेदना से तने हुए हैं जिसे हमारे मन भूल गये हैं और नियन्त्रित नहीं रख सकते...
मेरे अभ्यन्तर का उन्मत्त गजराज वनस्थली में विहार कर रहा है, और तुम में अपनी खोयी हुई करिणी को पहचानता है।
दिल्ली जेल, 25 नवम्बर, 1932