यह गाँव है बन्धु / इधर कई दिनों से / अनिल पाण्डेय
1.
यह गाँव है बन्धु
सवाल यहाँ नहीं चलते हैं
चाटुकारिता चलती है
व्यस्त हैं सब इसी में आजकल
अच्छी तरह से लगे हैं लोग
एक-दूसरे से छिपकर निकलते हैं अब
सबकी खबर सबको मिलती है
किसकी कितनी किससे चलती है
बीडीसी ब्लॉक प्रमुख की
करता है चाकरी
प्रधान सेक्रेटरी और वीडियो की
नागरिक ताकता है रास्ता इन सभी का
विधायक नहीं आता कभी
दरअसल कोई कुछ कहता ही नहीं
सब ख़ुशी और संपन्न हैं
सांसद की नजर में यहाँ पर
स्वस्थ हैं सब परिवार के लोग
डाक्टर की जरूरत ही नहीं
सफाई कर्मी हाजिरी लगाता है
प्रधान के फोन पर रोज-रोज
मलेरिया से पीड़ित हर तीसरा घर है
फिर भी प्रधान देवता और
डाक्टर यहाँ ईश्वर है
जनता है समझदार जरूरत नहीं किसी चीज की
युवाओं को फुर्सत नहीं क्रिकेट के मैदान से
वह मस्त है सेल्फी और मस्ती में
दुःख कहीं नहीं है यहाँ फिर भी सुखी कोई नहीं
रो रहे हैं सभी पता नहीं क्यों यह जाकर पता चलता है
यह गाँव है बन्धु
सवाल यहाँ नहीं चलता है
2.
सब ही तो सो गए हैं
गाँव जग रहा है
सब कर रहे हैं आराम
गाँव खट रहा है
खटता ही तो रहा है गाँव
दिन रात रात दिन
पिसता रहा है
घर गृहस्थी के जंजाल में
कठिन समय है ये
गाँव के लिये
उमड़ता घुमड़ता बादल
गस्त लगा रहा है लगातार
कि चुरा ले उसकी मालकियत
बरसकर तेज से
बादल को इस बार औकात
गाँव अपनी दिखाएगा
गाँव जग रहा है
कि जगता रहेगा
नहीं करने देगा मनमानी बादल को
जब तक कि वह बरसेगा
समेट कर रख लेगा सब कुछ
वह अपने बखार में
अब पहले जैसा साधनहीन नहीं है गॉंव
तकनीक से भी समृद्ध है अब यह
उधर बादल तैयारी करेगा
गाँव लाव लश्कर के साथ समेट लेगा
वह सब कुछ जो विनष्ट होने वाला है
बरसात की खुरापात का फायदा ही उठाएगा वह
कि इधर बरसेगा बादल
उधर गाँव बो देगा नई फसल
बादल शायद भूल चुका है
गाँव है तो मौसम है तभी उसकी गर्जना हैII
3.
गाँव
सुख की चादर ओढ़े
वंशज तुम्हारे
भूल गये हैं
दुःख का जीवन
भविष्य पथ का आगाज करता है
यह यहीं दिखा है
भर पेट खाने वालों को
भूखा रहना ही लिखा है
महुआ जामुन आम छोड़ कर
पिज्जा बर्गर खाना सिखा है
ठुकरा कर पूर्वज की वाणी
अपनी वह मन की करता है
देख रहे हो गाँव अभी
पथरीले घर में रहने वाले
सेहक रहे हैं
छप्पड़ की छाया को
उन्हें कहाँ आभास सत्य की
धूल दूब का स्पर्श
कंकडीले पथ से सुंदर होता है
भूल रहे सब जितना तुमको
अपनी जड़ से विलग हो रहे
अलग थलग पड़कर जीवन से
जन मन से दूर सिसक रहे
जो संगति में है बना तुम्हारे
अखण्ड सुख का भोग करता हैII
4.
गाँव तुम सही हो
नीयत तो ठीक थी तुम्हारी
जड़ जमीन से
जोड़ रखने की
हमें और हमारे अतीत को
हम ही नहीं ठीक हैं
स्वार्थ के अंध गलियों में प्रवेश कर
कटते रहे तुमसे
होते रहे अलग स्वयं से
स्व-सुख हित न कायम रख सके
तुम्हारी उम्मीद को
तुम जिंदा हो फिर भी
संघर्ष की अपरिमित सम्वेदना लिये
हम मर रहे हैं अनवरत
पलायन की कभी न समाप्त होने वाली दंश लिये
तुम्हारा अतीत तुम्हारे गौरव को बताता है
वर्तमान हमारा हमारे अतीत को चिढ़ाता है
भविष्य में भी तुम
जिंदा रहोगे अपनी जिद के साथ
हम नहीं होंगे
हमारी जिद बर्बाद करने की है
जन जीवन जमीन के साथ जमीर भी
तुम्हारा हरा भरा होना
अखरता है हम सभी को
हम नहीं चाहते
पेड़ पौधे फसल का लहलहाना
बंजर हम हैं तुम्हें भी बनाने की तैयारी है
क़ुछ नहीं रिश्ता हमारा तुम्हारा स्वार्थ की यारी है
5.
मेरे गांव में
योग्यताओं की कमी नहीं हैं
सच है ये कि
उनमें कोई नमी नहीं है
कोई कानून का ज्ञाता है
कोई राजनीति का विधाता है
यह भी सच है
किसी को कुछ नहीं आता है
तपे हैं सब
तप के कुंदन बने हैं
जला है गाँव
घर बहुत जंगल घने हैं
सब हैं, है नहीं कोई जैसे
बाग-बगीचे सब अनमने हैं
ओ प्यारे ग्रामवासियों
न सोओ तुम सब उठो जागो
भविष्य हमारा छिना जा रहा है
कौवों के हाथों गांव छला जा रहा है
उठोगे तो सूर्य किरणों का पान कर सकोगे
अन्यथा तो रात का अंधेरा घना है।।
6.
परदेसियों
रुख करो इधर
गाँव ने तुम्हें पुकारा है
तुम जो गए
न लौटे
न लौटे अभी तक
गम में डूबा
घर गली सारा है
पेड़ पौधे वही हैं
वही नदी इनारा है
ऋतुएँ आ जा रही हैं बेशक
बिन सम्वाद सब गंवारा है
तुम जो होते कलरव होता
सब मिल गाते गीत मिलन के
कौवा कोयल तोता
तुम नहीं हो सब दुखी हैं
सब घर में अंधियारा है
तुम आओ परदेसी
फिजा है जो सूनी सूनी
उसको रंग दे जाओ, आओ
परदेसियों प्रेम प्रीति के लाओ।।
7.
गाँव तुम्हें पूछने
नहीं आएगा कोई भी
कोई नहीं आयेगा देखने
तुम अभिशाप हो
विकासवादियों के लिये
समस्या की जड़ हो
उखाड़ फेंकने का ख्वाब
सँजोए लोग आते हैं
लगे रहते हैं उम्र भर
तुम नहीं उखड़ते
यह तुम्हारी जिजीविषा है
नहीं होते समाप्त जीवनधर्मिता है
तुम मानवीयता का आगाज़ हो
जिंदा रहोगे जब तक जिंदा है सृष्टि
जिंदा है आकाश धरती और जमीन भी
8.
गाँव के युवाओं उठो
जागो और आँखें खोलो
देखो समय बदल रहा है
वैचारिक शून्यता को दूर करो
मुक्त हो कर तुम सभी सम्वाद करो
वाद विवाद प्रतिवाद करो
कुछ बदलेगा
सुधरेगा बहुत अधिक कुछ
चुप रहोगे मारे जाओगे
तुम्हारा अस्तित्व कब्जाया जाएगा
गुलाम बना दिये जाओगे तुम
अतीत तुम पर शर्म करेगा
वर्तमान रोयेगा
भविष्य नहीं बढ़ने देगा आगे
कीड़े बन गन्दे नाले का
भटकोगे जीवन की तलाश में
सुधरो जितना सुधर सको, जागो।।