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यह छवि प्रकृत वधू की देखो बहुत निराली है / रंजना वर्मा

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यह छवि प्रकृति वधू की देखो बहुत निराली है ।
करुणा भरी दृष्टि सुषमा बरसाने वाली है।।

हाथों में है इंद्र धनुष शुभ मस्तक पर चन्दा
मुख पर तारों जड़ी सुहानी चूनर डाली है।।

गालों पर जैसे अरुणाचल ने गुलाल डाला
अधर पुटों पर सांध्य वधू ने मल दी लाली है।।

सुघर सलोना रूप क्रोध में सूरज सा तपता
खिलती जब मुसकान सुहाती मधु की प्याली है।।

अभिनन्दन में रचे अल्पना पाँव तले उसके
सुंदरता इस ने संसृति की आज चुरा ली है।।

मन्द सुगन्धित सुमनों की खुशबू से भरी हुई
प्रातः की यह महक बहुत सुख देने वाली है।।

अद्भुत रूप सलोना ले कर दुलहन प्राची ने
चल कर साथ समय के अपनी वफ़ा निभा ली है।।