यह तू ने क्या सितम ऐ चश्मे-अश्कबार किया / मेला राम 'वफ़ा'
यह तू ने क्या सितम ऐ चश्मे-अश्कबार किया
कि उनके सामने राज़े-दिल आशकार किया
वफूरे-यास में ये भी मआले-कार किया
रक़ीब को ग़मे-उल्फ़त का राज़दार किया
जफ़ा-ओ-जौरो-सितम तर्क तुम तो कर न सके
हमीं ने शेवाए-तस्लीम इख़्तियार किया
अजीब तौर तरीके जहाने-हुस्न के हैं
हुआ वो दुश्मने-जां, दिल ने जिस से प्यार किया
सबब है दुश्मनों से मेरे बात खाने का
यही कि दोस्तों पर मैं ने इंहिसार किया
तिरी निगाहे-हिक़ारत ने क्या क़ियामत की
मिरी निगाह में मुझ को गुनाहगार किया
मुझे न था तिरे वा'दों पे ऐतबार मगर
फिर ऐतबार किया और बार बार किया
सम्भालना दिले-शैदा का हो गया मुश्किल
ये तेरी दीद की हसरत ने बे-क़रार किया
किसी के पांव पे सर रख दिया 'वफ़ा' हम ने
बड़ा ही अर्ज़ए-तमन्ना में इख़्तियार किया।