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यह तो नहीं है त्राण / ओम पुरोहित ‘कागद’
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खेलता है थार
अपने सीने पर
लेता है सपने
उकेरता है पानी।
बिम्बित पानी
आता है खिंचा पीने
कोई प्यासा मृग
सच्ची लाता है
नहीं उकेर पाता प्यास।
बरसों संग रह
नहीं जानता मृग
खेल भावना थार की
खो देता है प्राण
यह तो नहीं है त्राण।