भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यह दिल खोल तुम्हारा हँसना / गोपाल सिंह नेपाली
Kavita Kosh से
प्रिये तुम्हारी इन आँखों में मेरा जीवन बोल रहा है
बोले मधुप फूल की बोली, बोले चाँद समझ लें तारे
गा–गाकर मधुगीत प्रीति के, सिंधु किसी के चरण पखारे
यह पापी भी क्यों–न तुम्हारा मनमोहम मुख–चंद्र निहारे
प्रिये तुम्हारी इन आँखों में मेरा जीवन बोल रहा है
देखा मैंने एक बूँद से ढँका जरा आँखों का कोना
थी मन में कुछ पीर तुम्हारे, पर न कहीं कुछ रोना धोना
मेरे लिय बहुत काफी है आँखों का यह डब–डब होना
साथ तुम्हारी एक बूँद के, मेरा जीवन डोल रहा है
कोई होगी और गगन में, तारक–दीप जलाने वाली
कोई होगी और, फूल में सुंदर चित्र बनाने वाली
तुम न चाँदनी, तुम न अमावस, सखी तुम तो ऊषा की लाली
यह दिल खोल तुम्हारा हँसना, मेरा बंधन खोल रहा है