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यह दिल जहां से लड़कर बेजान हो न जाए / मनोज अहसास
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यह दिल जहां से लड़कर बेजान हो न जाए
इक दिन कहीं तुम मुझसे अनजान हो न जाए
लफ्जों में धुंधलापन तो बस इसलिए है दिलबर
मेरी ग़ज़ल से तेरी पहचान हो न जाए
चुपके से तेरी महफिल तकता हूं दूर से मैं
मेरी तलब से साकी हैरान हो न जाए
मालिक तेरे हम से इतनी दुआ है मेरी
मिट्टी किसी के दिल के अरमान हो न जाए
यह रात दिन की आफत यह शोर यह तमाशे
बेताब हो के दुनिया सुनसान हो न जाए
अहसास जिंदगी दर दर पर गिर रही है
पत्थर ही कोई मेरा भगवान हो न जाए