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यह दौड़ जाती है लड़ती है खूं बहाती है / जियाउर रहमान जाफरी

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यह दौड़ जाती है लड़ती है खूं बहाती है
ये वो ग़ज़ल नहीं जुल्फों में दिन बिताती है

अमीरी देख के मीनू डिमांड करती है
गरीबी बात भी बासी मिले तो खाती है

रईस लोग तो एसी में क़ैद हो आये
ये धूप जिसको जलाना हो बस जलाती है

ये एक सोच जो मुझको कभी न उठने दिया
जिसे गिराना हो किस्मत उसे गिराती है

चले तुम जाते हो तकरीर सिर्फ करते हुए
ये एक आग कई बस्तियां जलाती है

सुना है जीत गए तुम तो नौकरी दोगे
ये क्या कहा जिसे सुनकर हंसी भी आती है

तमाम मसअले हल मेरे होने लगते हैं
वो अपना हाथ दुआओं में जब उठाती है