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यह नदी माँ भारती का गीत / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

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सुनो तुम भी
यह नदी की आरती का गीत है
 
नदी यह है पूजनीया
और सागर की सगी है
पीढ़ियों-दर-पीढ़ियों
हर नाव इसके तट लगी है
 
सगर-पुत्रों की
यही तो सदगती का गीत है
 
कई सदियों रही
हिम के देवता के शीश पर यह
जल रहे थे लोग
उनको तारने आई उतर यह
 
यह शिवा का -
जो जली खुद - उस सती का गीत है
 
आरती के मन्त्र
पुरखों ने रचे थे बहुत पहले
उन्हीं मन्त्रों का करिश्मा
रेत-कण भी हैं सुनहले
 
ऋषि हुए हम
यह नदी माँ भारती का गीत है