भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह नहीं कि नाजो नखरा और नजाकत है ग़ज़ल / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह नहीं कि नाजो नखरा और नजाकत है गजल
जिन्दगी की साफ तस्वीरें, हकीकत है गजल

तुम कहो और दूसरा समझे नहीं उस बात को
ऐसे तर्जे कवत से सीधी बगावत है गजल

जिसके सीने में नहीं जलती मुहब्बत की है आग
वह नहीं समझेगा इसको कि मुहब्बत है गजल

लोग लिख कर गीत को कहते गजल पढ़ते भी हैं
तब गजल के वास्ते होती मुसीबत है गजल

मरने से पहले गजल में यह भी वह लिखता गया
उम्र भर जाती नहीं यह ऐसी चाहत है गजल

हम फकीरों से इसे ये हुस्नों शक्लो रूप है
मत कहो ऊँचे घराने की बदौलत है गजल

अब हिफाजत से इसे रखना तुम्हारा काम है
मेरी उम्मीदो तमन्ना की वसीयत है गजल

कह नहीं सकता गजल किसकी किसे कैसी लगी
पर सुनी अमरेन्द्र की जो वह कयामत है गजल।