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यह नारीपन / हरिवंशराय बच्चन

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यह नारीपन।
तू बन्द किये अपने किवाड़
बैठा करता है इन्तजार, कोई आए,
तेरा दरवाजा खटकाए,
मिलने को बाहें फैलाए,
तुझसे हमदर्दी दिखलाए,
आँसू पोंछे औ’ कहे, हाय, तू जग में कितना दुखी दीन।

ओ नवचेतन!
तू अपने मन की नारी को,
अस्वाभाविक बीमारी को,
उठ दूर हटा,
तू अपने मन का पुरुष जगा,
जो बे-शर्माए बाहर जाए,
शोर मचाए, हँसे, हँसाए,
छेड़े उनको जो बैठे हैं मुँह लटकाए, उदासीन।