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यह प्रेम कथा कहिये किहि सोँ जो कहै तो कहा कोऊ मानत है / ठाकुर
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यह प्रेम कथा कहिये किहि सोँ जो कहै तो कहा कोऊ मानत है ।
सब ऊपरी धीर धरायो चहै तन रोग नहीँ पहिचानत है ।
कहि ठाकुर जाहि लगी कसिकै सु तौ वै कसकैँ उर आनत है ।
बिन आपने पाँव बिबाँई भये कोऊ पीर पराई न जानत है ॥
ठाकुर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।