भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह मन इस लोक में / शमशेर बहादुर सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


यह मन इस लोक में कहाँ थमता था !

कल तक कवि आसमान में रमता था ।

ऎसा युग पलटा आज मैं पूछता हूँ--

क्या स्वर्ग ही लिए धूल की समता था ?


(रचनाकाल : 1945)