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यह रहा उज्जैन / सुबोध सरकार / मुन्नी गुप्ता / अनिल पुष्कर

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यह रहा उज्जैन
                रिक्शा रोको ।
चाय की दूकान,
                जूते से सिगरेट बुझाते-बुझाते
जिस युवक ने मुझे देखा
वह नहीं जानता एक दिन उसकी भाषा थी संस्कृत ।
वह नहीं जानता
वह था शूद्रक का सबसे अच्छा पड़ोसी
भागीरथ, रिक्शा रोको
नर्मदा नदी को मैं प्रणाम करूँगा
रिक्शा रोको
इस जनपद को मैं प्रणाम करूँगा
इसकी मिटटी लेकर जाऊँगा ।

होटल लौटते समय दिखाई दे गया
जींस पहने चार बदमाशों के साथ
इन्हीं में से एक ने भाड़ा किया था
बासवदत्त को
लेकिन ये लोग बासवदत्त नाम के किसी को नहीं पहचानते
शूद्रक ? नहीं
उस नाम का तो कोई भी नहीं
एक जन था
बाईजी के घर जूते सम्भालता था ।
शूद्रक आपके साथ मुलाक़ात नहीं होगी मेरी ?
लेकिन इस जनपद से
सारा विश्वास आज चला गया गोवा के बालू में ?

वह रहा शूद्रक
भागीरथ, रिक्शा रोको
लेकिन कहाँ है शूद्रक ?
एक बूढ़े ने भोजपुरी में बताया —
उसकी पान की दूकान है
बिहार मुलुक से आया है लड़कों का व्यापार देखने ।
फिर भी भागीरथ तुम रिक्शा रोको
इस जनपद को मैं प्रणाम करूँगा
नर्मदा नदी को मैं माँ कहकर पुकारूँगा ।

मूल बाँग्ला से अनुवाद : मुन्नी गुप्ता और अनिल पुष्कर