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यह वह प्रेम है / नीता पोरवाल

यह
वह प्रेम है
जिसकी इफ़रात के वावजूद
नफ़रत से ही अटी दिखती है सारी कायनात

यह
वह प्रेम है
जो जमीं में दब अंकुरित होने का दर्द
झेलने के वजाय पलक झपकते ही बन जाता है
गुंचों वाला एक खूबसूरत शज़र

यह
वह प्रेम है
जो आखिरी साँसे भरते अपने कुछ निशानों पर
बिछा देगा अपने ही हाथों
तारकोल की स्याह परत

यह
वह प्रेम है
जब “प्रेम” लफ्ज़ आते ही
उसकी अपनी ही जुबां पर
फूट पड़ेगे एक रोज़ हरहरा कर अनगिनत छाले

ओ पग्गल !
यह वह प्रेम नहीं
यह प्रेम की धुन को बेसुरा बनाते हुए
प्रेम को इस जहां से
अलविदा कहने की एक साज़िश भर