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यह सावन सोक नसावन है मनभावन यामें न लाज भरौ / हरिश्चन्द्र
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यह सावन सोक नसावन है मनभावन यामें न लाज भरौ ।
जमुना पे चलौ सु सबै मिलिकै अरु गाइ बजाइ कै शोक हरौ।
हरि आवत हैँ हरिचंद पिया अहो लाड़िली देर न यामें करौ ।
बलि झूलौ झुलावौ झुकौ उझकौ यहि पाखैँ पतिब्रत ताखैँ धरौ ।
हरिश्चन्द्र का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।