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यह हमारी भूल, हम अधरों पे ले आये व्यथा / राजेन्द्र वर्मा
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यह हमारी भूल, हम अधरों पे ले आये व्यथा,
अब किसे अवकाश जो सुन ले सुदामा की कथा ।
सिन्धु के तट बैठ मंथन-दृश्य देखा आपने,
पूछिए हमसे, कि हमने किस तरह सागर मथा !
आप ‘कालीदास’ से भी दो क़दम आगे बढ़े,
वृक्ष ही को काट देंगे, यह कभी सोचा न था ।
झूठ का साम्राज्य कैसे और विस्तृत हो सके,
प्राणपण से सुन रहे वे ‘सत्यनारायण-कथा’ ।
लाज को भी लाज उनके सामने आने लगी,
उनके घर सदियों से लज्जाहीनता की है प्रथा ।