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य़ूं हमेशा के जैसी वही धूप है / दिनेश त्रिपाठी 'शम्स'

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य़ूं हमेशा के जैसी वही धूप है ,
लग रही आजकल कुछ नयी धूप है .
झॆलकर शीत की सर्द तीखी चुभन ,
लग रही है बहुत डर गयी धूप है .
तट पे सागर के बेसुध है लेटी हुई ,
आजकल अनमनी , आलसी धूप है .
हम सरेआम जिससे लिपटकर मिले ,
ये वही गुनगुनी , मखमली धूप है .
इसका कोई भरोसा नहीं कीजिए ,
यार ये मतलबी , मौसमी धूप है .