भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
याँ किये ग़म है जो गिर्या ने असर छोड़ दिया / 'निज़ाम' रामपुरी
Kavita Kosh से
याँ किये ग़म है जो गिर्या ने असर छोड़ दिया
हम ने तो शग़्ल ही दे दीद-ए-तर छोड़ दिया
दिल-ए-बे-ताब का कुछ ध्यान न आया उस दम
हाए क्यूँ हमने उसे वक़्त-ए-सहर छोड़ दिया
क्या सताए नहीं जाते हैं वलेकिन चुप हैं
शिकवा करना तेरा ए रश्क-ए-क़मर छोड़ दिया
दम-ए-रूख़्सत कभी कुछ दिल की तमन्ना न कही
दामन-ए-यार उधर पकड़ा इधर छोड़ दिया
दिल की उल्फ़त न सही प्यारे की बातें न सही
देखना भी तो इधर एक नज़र छोड़ दिया
ग़ैर के धोखे में ख़त ले के मेरा क़ासिद से
पढ़ने को पढ़ तो लिया नाम मगर छोड़ दिया