भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
याचना / रामगोपाल 'रुद्र'
Kavita Kosh से
जीवन को भर दो प्राणों को यौवन से भर दो
शक्ति हे, शिंजन से भर दो।
जाग उठे मेरा पौरुष-बल,
साहस हो मेरा पथ-सम्बल,
उज् र्जस्वित स्वर से मेरे उर को उर्वर कर दो।
विद्युन्मय होवें मेरे पग,
मेघोन्मन होवे मेरा मग,
मेरा पग-जल पाने का इन काँटों को वर दो।
जग की हो जो भी कठिनाई,
खड़े कूट, कंटक या खाई,
मेरे निर्झर के मग में सब शैल उठा धर दो।
तोड़ चले, मेरा अप्रतिहत
निर्झर गति के बंध, गतागत,
मैं माँगूँ, मेरे चलने को दुर्गम ही स्तर दो।
जड़ की भी जड़ता हर लूँ मैं,
चेतन की सत्ता भर दूँ मैं,
शालिग्राम बनें जो, मुझको ऐसे पत्थर दो।
मरे जीर्ण मेरी कायरता,
जाग्रत् हो जीवन-तत्परता,
नीलकंठ शंकर बनने का वर, हे सुंदर! दो।