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यातना पर एमनेस्टी रिपोर्ट के लिये फुटनोट / मार्गरेट एलिनॉर एटवुड / राजेश चन्द्र

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यातना कक्ष में कुछ भी वैसा नहीं है
जिसकी तुमने अपेक्षा की होगी ।
न कोई ओपेरा सेट न कामोत्तेजक ज़ंजीरें
और न चमड़े की वे वस्तुएँ
चमकीली पोर्न पत्रिकाओं वाली,
न ही तीस के दशक की कोई
भयावह कालकोठरी मकड़ी के जालों से भरी,
न ही नँगी ठण्डी रोशनी वाली
कोई जगह भविष्य की
जिसके बारे में सोच कर हम सिहर जाते हैं ।
ज़्यादा से ज़्यादा किसी पुराने बीमार
ब्रिटिश रेलवे स्टेशन की तरह,
खरोंचों से भरी जिसकी हरी दीवारें
और चाय फैली हुई सब तरफ़,
तुड़े-मुड़े कागज, और एक आदमी उकड़ूँ
हमेशा फ़र्श की सफ़ाई करता हुआ ।

इसकी दुर्गंध हालाँकि, किसी अस्पताल जैसी,
रोगाणुरोधकों और बीमारियों वाली
और कितनी ही बार ख़ून जैसी
हर कहीं पसरी हुई
वैसी ही जैसी कसाईबाड़ों से उठती है ।

जो आदमी काम करता है यहाँ
वह खो देता है सूँघने की चेतना अपनी ।
वह इस काम से ख़ुश है, क्योंकि
उस जैसे कुछ और भी हैं वहाँ ।
वह नहीं है कोई जल्लाद,
वह तो केवल
साफ़ करता है फ़र्श को :
प्रत्येक सुबह एक जैसी उल्टी,
एक ही तरह के दाँत, एक जैसी
पेशाब और तरल पाख़ाना, वही सन्त्रास ।

कुछ में हिम्मत होती है, बाक़ियों में नहीं,
कुछ जो ऐसे काम करते हैं
वे इन्हें ही मानते हैं असली काम,
और कई ऐसे हैं जो ऊबे हुए हैं
जैसे ऊबे रहते हैं छोटे नौकरशाह
उनसे कहो कि इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता,
कौन जान पाएगा कि वे बहादुर थे,
हो सकता है
वे अब भी वैसे ही बात करें
या फिर समाप्त ही कर दें इसे ।

कुछ के पास कहने को कुछ नहीं है,
और इससे भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता ।
उनके भी तोड़े-मरोड़े गए शरीर,
टूटी उँगलियों और कटी-फटी जीभ के साथ,
फेंक दिए जाते हैं
लोहे की काँटेदार बाड़ पर
वाणिज्य-दूत के लॉन की,
साथ ही जला दिए जाते हैं
बच्चों के शव
ताकि कर सकें अपनी माताओं से बात वे ।

वह आदमी जो फ़र्श साफ़ करता है
ख़ुश है कि वह इनमें से नहीं है
ऐसा तभी होगा अगर वह मुँह खोल दे
उसके बारे में जो वह जानता है ।
वह काम करता है लम्बे समय तक,
पूछताछ में सहयोग देता है,
उतना ही खाता है जितना घर से लाता है,
जिससे स्वाद आता है
पुराने ख़ून और लकड़ी के उस चूरे का
जिससे फ़र्श साफ़ करता है वह ।
उसकी पत्नी ख़ुश होती है
जब वह उसे पैसे लाकर देता है
रोटी के लिए,
उसे बता दिया गया है
कि वह कोई सवाल न करे ।

जब तक वह सफ़ाई करता है,
कोशिश करता है कि कुछ न सुने
वह कोशिश करता है
कि बदल दे ख़ुद को एक दीवार में,
एक मोटी दीवार, एक दीवार
जो नरम और गूँज से रहित हो ।
वह कुछ नहीं सोचता
सिवाय वापस लौटने के
गर्म ओसारे में अपने घर के,
सिवाय अपने दरवाज़े
और उन बच्चों के
जिनकी उपेक्षित त्वचा और निर्दोष आँखें
आकुल रहा करती हैं
उससे लिपट जाने को ।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र