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यातना / सुस्मिता पाठक
Kavita Kosh से
हमरा पाछाँ भागैत भीड़कें
बूझल नहि छैक जे
की लिखल अछि
हमरा पीठ पर
हमरा आगाँ
चलि आबि रहल भीड़कें
बूझल नहि छैक जे
हमरा छाती पर की गोदाएल अछि
हम अपन एहि
लिखल-गोदाएल शब्द आ
आखर केर अर्थक बोझसँ लदल
ठहरल छी बीचमे
ने तँ पीठ पाछाँ भागैत जुलूसक
द’ पबैत छी संग
ने सोझाँमे चलि अबैत भीड़कें
द’ पबैत छी बाट
हमरा पीठ पर
लिखल अछि आजुक यातना
गोदाएल अछि
हमरा छाती पर
काल्हुक प्रतीक्षा।