भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यात्राएँ बीतीं / ठाकुरप्रसाद सिंह
Kavita Kosh से
यात्राएँ बीतीं
पर्वत की
मेले बीते
तुमसे जेठी ब्याहीं
ब्याहीं छोटी तुमसे
सबने सज-बजकर ब्याह रचे
पाए मनचीते
मेले बीते
पगली बेटी अनमन
घूम फिरी तू रनबन
बीते दिन गिन-गिन
आँसू पीते
मेले बीते
यात्राएँ बीतीं