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यात्रा-1 / प्रेमजी प्रेम
Kavita Kosh से
यात्रा का मार्ग
जब-जब भी पूछा
लोगों ने बताया-
अलग-अलग ।
मैं, बिना बताएं ही
इस मजिल तक
आ पहुंचा हूं ।
अनुवाद : नीरज दइया