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यात्रा-2 / प्रेमजी प्रेम
Kavita Kosh से
भावनाओं को
अर्थ देना, बताना
अर्थ को अक्षर देना
माला फेरना
अक्षर-अक्षर की
फिए चुप-चाप
भीतर ही भीतर चलना ।
यह कैसी यात्रा है ?
तू सोचता है-
मै चल रहा हूं
भाग रहा हूं
जमाने से भी आगे ।
चन्द्रमा कितना ही भागे
धरती से उसका गठबधंन
नहीं टूट सकता…
यह कैसी यात्रा है ?
अनुवाद : नीरज दइया