यात्रा पिछत्तर वर्ष की / योगेन्द्र दत्त शर्मा
कवि देवेन्द्र शर्मा इन्द्र के पिछत्तर वर्ष के पूरे होने पर
भीगा हुआ मन का पुलिन
है व्यक्त कर पाना कठिन
यह शुभ दिवस है जन्म दिन उस सूर्य का ।
जिससे प्रकाशित हृद-गगन
है गंधमय जिसका सृजन
आलोकधर्मा प्रतिफलन वैदूर्य का ।
बेहद सहज बेहद सरल
देता अमृत ,पीकर गरल
बाहर सरस भीतर तरल वह कब विरत।
कुछ वेदना कुछ हर्ष की
संघर्ष की उत्कर्ष की
यात्रा पिछत्तर वर्ष की जारी सतत ।
देवेन्द्र शर्मा इन्द्र ने
रचकर रखे जो सामने
वे ग्रन्थ अब मानक बने हैं काव्य के ।
साक्षी चिरंतन प्यास के
उत्सव पगे उपवास के
वे पृष्ठ है इतिहास के साहित्य के।
दोहा गजल नवगीत क्या
ऊर्जस्वियों को शीत क्या
उनके लिए विपरीत क्या होगा समय ।
वह शुभ्र शुभ उज्ज्वल सुभग
सबमें मिले सबसे अलग
रस छंद गंधों में सजग रहते अभय।
कितना विपुल उनका सृजन
है श्रेष्ठता का स्वस्त्ययन
उपलब्धियों का आयतन भुजपाश में।
हम धन्य जो उनसे जुड़े
उनकी दिशा में ही मुड़े
कुछ दूर तक हम भी उड़े आकाश में।
चलती रहे यह सर्जना
बाधा न कोई वर्जना
कूके सदा संवेदनाओं की पिकी।
ऐसा सुखद बानक बने
आत्मीय क्षण ये हों घने
है कामना यो ही मने शतवार्षिकी।