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यात्रा (तीन) / शरद बिलौरे
Kavita Kosh से
विदा के समय
सब आए छोड़ने
दरवाज़े तक माँ
मोटर तक भाई
जंक्शन पर बड़ी गाड़ी पकड़ने तक
दोस्त।
शहर आया अंत तक साथ
और लौटा नहीं।