Last modified on 31 जनवरी 2010, at 16:54

यादे-जानाँ भी अजब रूह-फ़ज़ा आती है / जिगर मुरादाबादी


यादे-जानाँ<ref>प्रेयसी की याद</ref> भी अजब रूह-फ़ज़ा <ref>प्राण-वर्धक</ref> आती है
साँस लेता हूँ तो जन्नत की हवा आती है

मर्गे-नाकामे-मोहब्बत<ref>असफल प्रेम मृत्यु</ref>मेरी तक़्सीर<ref>ग़लती</ref>मुआफ़<ref>क्षमा</ref>
ज़ीस्त<ref>जीवन</ref> बन-बन के मेरे हक़ में क़ज़ा <ref>मृत्यु </ref> आती है

नहीं मालूम वो ख़ुद हैं कि मोहब्बत उनकी
पास ही से कोई बेताब सदा<ref>आवाज़</ref>आती है

मैं तो इस सादगी-ए-हुस्न पे<ref>सौंदर्य की सादगी पर</ref>सदक़े
न जफ़ा आती है जिसको न वफ़ा आती है

हाय क्या चीज़ है ये तक्मिला-ए-हुस्नो-शबाब<ref>सुन्दरता और यौवन की पूर्ति</ref>
अपनी सूरत से भी अब उनको हया<ref>लाज,लज्जा</ref>आती है

शब्दार्थ
<references/>