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यादों की खुशबू से भरे हुए / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
कमरे में बैठकर
आओ, नदी-जंगल की बात करें
बाहर मीनारें हैं
सडकें हैं
ट्रैफिक का शोर है
शीशे के चेहरे हैं
पेचीदा गलियों के मोड़ हैं
खिड़की के पार
कभी दिखता था
आओ, उस पीपल की बात करें
बचपन से सुनते हैं
दूर कहीं
एक नदी बहती है
अपनी यह गली
सूखे की कथा रोज़ कहती है
सपनों में
जो झरना झरता है
आओ, उसके जल की बात करें
रेत के बगूलों से
घिरा हुआ
कमरा वह द्वीप है
जिस पर
जलपरियों के नाच हैं
शंख और सीप हैं
यादों की खुशबू से
भरे हुए
आओ, हम फिर कल की बात करें