भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यादोॅ के बरियाती / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो
Kavita Kosh से
यादोॅ के बरियाती विरहा के गाँव छै;
घाट-बाट छिरियैलोॅ पियवा के नाँव छै!
कोयल के कूक बनी हूक जिया सालै छै
बिसरैलोॅ गीत-लाद बट-बट केॅ ख्यालै छै
बाबा के अमराई, पनघट के पुरबाई
पोर-पोर उगलोॅ ऊ रूप ठाँव-ठाँव छै!
चानोॅ के छाँहीं में फूल-कली ठुनकै छै
कोबा में रस ढारी मनसै छै मुस्कै छै
टहकै छै डंक एक भमरा के भन-भन में
बेसुरता तोड़ै लेॅ कागा के काँव छै!
डार-डार मौलै छै, पात-पात सिहरै छै
अनटेटलोॅ टीस एक ठौर-ठौर पसरै छै
डोलै छै लहर-लहर धारोॅ-मँझधारोॅ में
बिन माँझी उपचैलोॅ जिनगी के नाव छै!