भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
याद आए तो आँख भर आए / कमलेश भट्ट 'कमल'
Kavita Kosh से
याद आए तो आँख भर आए
किन ज़मानों से हम गुज़र आए।
पाँव में दम ज़रा रहे बाकी
क्या पता कैसा कल सफर आए।
उसने चढ़ ली है ऐसी ऊँचाई
गैर मुमकिन है वो उतर आए।
सबके चेहरे पे कुछ खुशी आये
आए कैसे भी वो, मगर आए।
हमने पहले न कम सुनी खब़रें
जो भी आनी हो अब खब़र आए।
आसमां भी उदास रहता है
सोचता है ज़मीन पर आए।