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याद आ गए सुकरात / नित्यानंद गायेन

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हमने सदियों तक ईश्वर की गुलामी की
कभी भय से
कभी लोभ से
फिर भी पिघला नही उनका दिल
बीमारी में, आपदा में
हर पीड़ा में
मिन्नते की
सदियों बाद मालूम हुआ
वे बहरे हैं हमारे लिए
फूल, माला, फल, दूध
गहने कपड़े
सब चढ़ाए
उनके मन्दिर हो गए आलीशान
हम दीन के दीन ही रहे
मठ और सत्ता पर आसीन
दलालों ने कहा
बने रहो सेवक अच्छे फल के लिए
सड़कों के किनारे पड़े मिले हम
बेहाल-बेघर
बड़ी हिम्मत से ललकारा
आज सदियों बाद
कि स्वीकार नही तुम्हारी दासता
एक स्वर में चीख़ पड़े सभी पाखण्डी
मुझे याद आ गए सुकरात