याद आ रही थी मुझको / हनुमानप्रसाद पोद्दार
याद आ रही थी मुझको वह मधुर-मनोहर मृदु मुसकान।
भूला नहीं जा रहा था मुझसे वह मुरलीका मधु-गान॥
तना जा रहा था मन बेहद, मिटा जा रहा था तन-भान।
उड़ा जा रहा था जीवन शुचि विहग श्याम प्रति गति निर्मान॥
इतनेमें मद-मादनि मुरलीकी दी मधुर सुनायी तान।
औचक चौंक उठी, दौड़ी उस ध्वनिको लक्ष्य बना, तज मान॥
दीख पड़े तुम खड़े चलाते विकट भ्रुकुटिके सायक तान।
मा हुई चली भुज भरने, भरा प्राण उल्लास महान॥
पहुँच न पायी निकट, हुए तुम सहसा प्रियतम! अन्तर्धान।
जल-वियोगिनी मछलीकी ज्यों तड़प उठी, मुख-मण्डल लान॥
चल न सकी, विषण्ण-वदना मैं बैठ गयी बन दुखकी खान।
बाँध लिया आ भुज-पाशोंमें मुझे किसीने दे सुख-दान॥
स्पर्श-जनित सुख मिला अपरिमित, खुले नेत्र, प्रिय मिले सुजान।
दीखा मुझे अंकभर प्रियतम करने लगे मधुर रस-पान॥
मिला हृदयसे हृदय, हुए सब अंग मा, रस-सुधा-निधान।
बढ़ी अमित रस-सुधा-तरंगिणि, बहा समस्त जान-विजान॥
भूला विश्व, हुआ सब विस्मृत, रही एक मधुरिमा अमान।
मैं हूँ या तुम हो, इसका मुझको न रहा किंचित् भी ध्यान॥