भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

याद उस रात की दिल से न मिटाई जाए / ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

याद उस रात की दिल से न मिटाई जाए।
वो मुलाक़ात तो हमसे न भुलाई जाए।

क्या मिली खूब नज़र होश गँवा हम बैठे,
तबसे ख़्वाहिश है कि नज़रों से पिलाई जाए।

मुल्क़ में चैन अमन को ये जरूरी है अब,
नौजवानों को सही राह दिखाई जाए।

कामियाबी न मिले ये तो नहीं हो सकता,
काम को काम समझ लौ तो लगाई जाए।

हाथ पर हाथ धरे से न मिलेगा कुछ भी,
ये जरूरी है कि ज़हमत तो उठाई जाए।

फ़र्ज़, अहसास, वफ़ा और मुहब्बत लेकर,
'ज्ञान' दुनियाँ ही कहीं और बसाई जाए।