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याद करने से पहले भुलाना पड़ा / दीपक शर्मा 'दीप'
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याद करने से पहले भुलाना पड़ा
ये ज़हर था मगर आज़माना पड़ा
जानकर भी के है तीरगी बद-बुरी
जानकर भी इसे गुद-गुदाना पड़ा
रा'हबर के ज़हन को समझने हमैं
राहजन के मुहल्ले में जाना पड़ा
अब हँसी आ रही है के किसके लिए
हाय किसके लिए मार खाना पड़ा
आप तो सर टिका कर के चलते बने
और यों ही रहा फिर ये शाना पड़ा
ज़िन्दगी ज़िन्दगी ज़िन्दगी ज़िन्दगी
इस बुरी नज़्म को गुनगुनाना पड़ा
दोज़खी में रुलाई तो लिक्खी ही थी
पर ग़ज़ब ये हुआ मुस्कुराना पड़ा